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सकारात्मक सोच पर कहानियाँ

इनसा के शरीर का सबसे ज्यादा  असरकारक अंग है- आंख और कान ।  आदमी आंखों से ऑब्जर्व करता है उन चीजों को समझता है ।  आंखों से देखी हुई चीजें देख कर अपनी समझ  के हिसाब से उसके पिक्चर फॉर्मेट को समझकर उसके बारे में धारणा बनाता है ।

 

लेकिन कानों से सुनी हुई बात हु- बहू उसके दिमाग में फिट हो जाती है ।  कानों को स्पष्ट रूप से पता चलता है कि वह क्या सुन रहा है ।  जैसे यदि आपको कोई बोल रहा है   कि आप बहुत अच्छे इंसान हो तो आपके दिमाग में बहुत अच्छे इंसान होने का एक भावनात्मक  संदेश फिट हो जाता  है ।  लेकिन यदि आपके सामने किसी महान बंदे की,  किसी महान व्यक्तित्व की फोटो लगी है तो उस फोटो को देखकर , उसके  प्रति  ऐसी धारणा बनाते हैं ।  उसके बारे में आपने कैसा सुना है,  कैसा पढ़ा  है,  कैसा लिखा है उसके आधार पर ही धारणा बनाते हैं ।  इन दोनों में से भी जो सबसे पावरफुल चीज है वह है कानों से  सुनी हुई चीजें ।

 

कभी कभी कुछ  कहानियां  हम पढ़ते हैं , पढ़ते हुए,  मुंह से बोल बोल कर पढ़ते वक्त जो आवाज कानों तक  जाती है वह हम सुनते हैं । उस वक्त  कुछ  शब्द सकारात्मक तो कुछ शब्द  नकारात्मक  भी हमारे जहन  मे कानों के जरिये पहुँच  जाते हैं । वो शब्द , वो  कहानियां  दिमाग में ऐसी फिट हो जाती हैं कि हमारा जीवन बदल सकती है ।  आइए मैं यहां पर दो तीन कहानियों का जिक्र करता हूं

 

 

 

 

 

 

 

सोच का फर्क

किसी छोटे से गाँव में एक गरीब इंसान  बहुत  मेहनत  करके कुछ धन कमाकर अपना  मकान बनवाता है। उस मकान को बनवाने के लिए वह पिछले कई वर्षों से कमाकर  पैसा बचत करता है ताकि उसका परिवार छोटे से झोपड़े से निकलकर पक्के मकान में सुखी रह सके। आखिरकार उसकी मेहनत रंग लाई और उसका  मकान बन कर तैयार हो जाता है। शुभ घड़ी , शुभ मुहूर्त देखकर,   पंडित से पूछ कर गृह प्रवेश के लिए शुभ तिथि  की जाती है। लेकिन गृहप्रवेश के 1  दिन पहले ही उस घर में किसी कारण वश आधी रात को आग लग जाती है  और उसका मकान पूरी तरह धु धु कर जल जाता है, जलकर राख़ हो जाता है। सुबह  आकर जब अपना घर देखता है  तो वह दौड़ता हुआ  बाजार जाता है और मिठाई के पेकेट खरीद कर ले आता है। अपने इष्ट देव को नमन करता है और फिर  मिठाई लेकर वह घटनास्थल पर पहुंचता है  जहां पर पूरे गाँव के  लोग इकट्ठे होकर उसके के मकान गिरने का पछतावा कर रहे थे। वहाँ उपस्थित लोग आपस में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। वह आदमी हंसता  हुआ, ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए   वहां पहुंचता है और सबको मिठाई बांटने लगता है। यह देखकर सभी लोग हैरान हो जाते हैं। तभी उसका एक मित्र उससे कहता है, कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए हो, तुम्हारा घर गिर गया, तुम्हारी जीवन भर की कमाई बर्बाद हो गई और तुम खुश होकर मिठाई बांट रहे हो। वह आदमी मुस्कुराते हुए कहता है, तुम इस घटना का सिर्फ नकारात्मक पक्ष देख रहे हो इसलिए इसका सकारात्मक पक्ष तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है। ये तो बहुत अच्छा हुआ कि मकान आज ही जल  गया। वरना तुम्ही सोचो अगर यह मकान  एक दिन  बाद गिरता तो मैं, मेरी पत्नी और बच्चे मेरा भरा पूरा परिवार सभी मारे जा सकत थे।। तब कितना बड़ा नुकसान होता।

इस तरह की सोच से , इस कहानी से आपको समझ में आ गया होगा सकारात्मक और नकारात्मक सोच में क्या अंतर है। सकारात्मक पहलू को सोचकर इंसान कैसे खुश रह सकता है ।  यदि वह व्यक्ति नकारात्मक दृष्टिकोण से सोचता तो शायद वह मानसिक तनाव का शिकार होकर , मानसिक संतुलन भी खो सकत था ।  लेकिन केवल एक सोच के फर्क ने, उसके सोचने के नजरिए ने  उसके दुख को सुख में परिवर्तित दिया, उसे जीवन जीने का एक मकसद दे दिया ।

 सकारात्मक सोच की शक्ति

 

एक बार एक छोटे से राज्य पर एक बहुत बड़े राज्य ने चढ़ाई कर दी। राज्य छोटा था इसलिए सेना भी छोटी थी। जो उस राज्य की विशाल सेना के आगे तिनके के सामान थी। गुप्तचरों ने जब सेनापति को इसकी सूचना दी तो सेनापति घबरा गया। वह फौरन राजा से जाकर मिला और सारी आपबीती सुनाई।‌ राजा ने जब सुना कि उसके राज्य पर शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया है तो वह क्रोधित हो उठा। राजा ने सेनापति से कहा- जाइए जाकर युद्ध की तैयारियां शुरू किजिए। सेनापति बोला- परंतु महाराज, हमारी सेना में केवल दस हज़ार सैनिक है और उनके पास एक लाख सैनिक है। ऐसे में हम उनका मुकाबला कैसे कर पाएंगे। राजा उसका उत्साह बढ़ाते हुए बोला- कुछ भी हो लेकिन हम पराजय स्वीकार नहीं कर सकते। परंतु महाराज मैं जानबूझकर मौत के मुंह में नहीं जा सकता। सेनापति ने यह कहते हुए अपनी तलवार राजा के कदमों में डाल दी। सेनापति के इस कदम से राजा बड़ी मुश्किल में पड़ गया। अब वह भागा-भागा राजगुरु के शरण में पहुंचा। उसने राजगुरु से सारी बात बताई और इस मुसीबत से निकलने का उपाय पूछा। राजगुरु ने कहा- राजन् सबसे पहले आप अभी के अभी उस सेनापति को कारागार में डाल दो अन्यथा वह अन्य सैनिकों को भी हतोत्साहित कर देगा और जल्द से जल्द युद्ध की तैयारियां पूरी करों।‌ हम स्वयं सेनापति की हैसियत से सेना का नेतृत्व करेंगे। परंतु गुरुवर अपने तो आज तक किसी शस्त्र को हाथ भी नहीं लगाया है फिर आप कैसे युद्ध कर सकेंगे। राजगुरु ने कहा- आप चिंता ना करें राजन् मैं देख लूंगा।

राजा के पास और कोई चारा भी नहीं था इसलिए वह राजगुरू की बात मान गया। आधी रात को राजगुरु अपनी सेना को लेकर सीमा की ओर रवाना हुए। चलते-चलते वे

राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में पहुंचे तभी उन्हें एक मंदिर दिखाई पड़ता है। राजगुरु ने सैनिकों से कहा- रूको जरा अपने देवता से पूछ लूं कि हमारी जीत होगी या हार। सैनिकों ने अचरज से पूछा कि ये कैसे हो सकता है,भला मंदिर के देवता ये कैसे बता सकते हैं। राजगुरु ने कहा- इस मंदिर के देवता बड़े चमत्कारी है और इनकी कही  हुई बात कभी झुठ नहीं हो सकती।

फिर राजगुरु ने जेब से चांदी का एक सिक्का निकाला और मंदिर के देवता को प्रणाम करके बोले-चित आया तो हमारी जीत और पट आया तो हार। यह कहकर राजगुरु ने सिक्का उछाल दिया। सैनिकों ने देखा तो सिक्का चित गिरा था। अब राजगुरु सैनिकों का उत्साहित करते हुए बोले- साथियों अब हमारे हारने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता इसलिए पुरे जोश और जुनून के साथ लड़ना। फिर योजना अनुसार वे रात के तीसरे पहर में आराम करते शत्रुओं पर टुट पड़े। बड़ा भीष्म युद्ध हुआ सैनिकों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। धीरे-धीरे वे शत्रुओं पर भारी पड़ने लगे। उन्होंने ऐसी मार-काट मचाई की शत्रु सैनिकों के पांव उखड़ गए और वे भागने लगे। अंततः जीत उनकी ही हुई। वापस लौटते वक्त सैनिक फिर उसी मंदिर के पास रूके और मंदिर के देवता को धन्यवाद देते हुए कहने लगे,आपकी कृपा से ही हमारी जीत संभव हो सकी है। राजगुरु मुस्कुराएं और बोले- जीत इनकी कृपा से नहीं बल्कि तुम्हारे सकारात्मक सोच का परिणाम है। लेकिन सैनिकों को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। अतः राजगुरु ने वो सिक्का निकाला। सैनिकों ने देखा तो उनकी आंखें फटी रह गई। सिक्के‌ में दोनों तरफ केवल चित ही था।‌

 

{Thanks to Story writer}

 

 

 

 

 

 

हमारे जीवन में भी इस तरह की कई परिस्थितियाँ आ जाती है जिससे हम परेशान होकर दुखी हो जाते हैं।   लेकिन अगर हमारी सोच और नजरिया सही और सकारात्मक होगा और हम सकारात्मक दृष्टिकोण से देखेंगे तो हमें हर चीज का सकारात्मक पहलू भी दिख जाएगा;  जो हमारे जीवन के दुखद और दुखदाई पलों को भी सुखद और  सुखदाई बना देगा। इसलिए हमें जीवन में हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए क्योंकि सकारात्मक सोच ही हमें दुख के भंवर से निकाल सकता है।   हमारे जीवन को आनंद और  खुशियां से भर सकता है। जबकि नकारात्मक सोच केवल हमें दुख ही नहीं देती बल्कि हमें दुख के दलदल में फसकर, हमारे जीवन को बर्बाद भी कर देती है। सकारात्मक सोच हमें अंदर से हिम्मत देती है। अंदर से हमें कभी भी टुटने नहीं देती है। परंतु जीवन की एक असली सच्चाई यह भी है कि जब इंसान किसी दुख के दलदल में फस जाता है तब उस दुखद घटना के कठिन क्षणो में  सकारात्मक सोच पाना काफी मुश्किल होता है।   लेकिन अगर हम अपनी सोच को सदेव, हमेशा के लिए  स्वभाविक रूप से सकारात्मक बना लें तो हम दुनिया की किसी भी मुसीबत को हमारी सोच की बदोलत हरा कर  स्वयं को उस दुख के भंवर से  बाहर निकाल सकते हैं।

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