बिना मतलब के शब्द
“All that really belongs to us is time; even he who has nothing else has that.” ~
Baltasar Gracian
“जो चीज़ वास्तव में हमारे पास है, वह है समय; क्योंकि जिसके पास कुछ भी नही होता, उसके पास भी समय
होता है।” ~ बाल्टसर ग्रेसियन
हर वक्ता के लिए मंच पर बोलते वक्त एक अलग स्थिति पैदा होती है। वक्ता जब श्रोताओं के बीचो बीच में मंच
पर खड़ा होता है उसके पीछे और दोनों साइड में मंच के मंचासीन अतिथि बैठे होते हैं। सामने सैकड़ों और
हजारों की तादाद में श्रोताओं की बहुत बड़ी तादाद बैठी होती है। तब वक्ता के मन में कहीं ना कहीं एक छोटा
सा, हल्का सा नर्वसनेस आ जाता है। उस टाइम में वक्ता किस तरीके से अपने भाषण को मैंनेज करता है इसमें मैं
2 कैटेगरी मानता हूं।
परफेक्ट सीखे हुए और अनुभवी वक्ता अक्सर वह अपनी प्रैक्टिस से, अपने अनुभव से प्रैक्टिस करते करते, उस
लेवल तक पहुंच जाते हैं कि वह यह गलतियां नही करते हैं।
दूसरी कैटेगरी में वह आते हैं जो सीखने की स्टेज में होते हैं। जो सीखते हैं उनके साथ में यह स्थिति बनती है कि
कुछ की तो आदत होती है और कुछ लोग सीखने की स्टेज में अपनी गलतियों को छुपाने के लिए और भाषण की
निरंतरता बनाए रखने के लिए बीचबीच में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जो भाषण की शुद्धता को खराब
करते हैं और श्रोताओं की रुचि को घटा देते है। कभी कभी ऐसे शब्द वह बोलता है जो खुद को पता ही नही
होता लेकिन वह उसके आदत में आ जाता है। तो खास करके इस बात का आपको ध्यान रखना है। अब मैं कुछ
ऐसे शब्द लिखने जा रहा हूं जिनका प्रयोग आप कदापि ना करें।
चाहे आप सीखने की स्टेज में है या फिर आप सीख चुके हैं; आप एक अच्छे वक्ता हैं। लेकिन आपके जहन में कुछ
ऐसी आदतें विकसित हो चुकी होगी, इसलिए कृप्या ऐसे शब्दों के प्रयोग करने की आप कोशिश ही न करें।
प्रेक्टिस से, धीरे-धीरे इन शब्दों को कम करें और धीरे धीरे अपने भाषण से बोलते वक्त ऐसे शब्दों के बोलने की
ओर रिपीट करने की आदत को बिल्कुल डिलीट करें।
ऐसे शब्द जो बिना मतलब के शब्द हैं, इन शब्दों का प्रयोग कदापि नही करना चाहिए जैसे की:
हम्म्म्म
न न न
मतलब
है न कि
है न को
मैं कहता हूं
मैं बताता हु
ऐसा है न
ऐसा नही होता न
आआआ
ऊऊऊऊ
ईईईईई
एएए
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