धर्म क्या है ?
धर्म क्या है , धर्म किसे कहते है , धर्म का आधार क्या है , धर्म की परिभाषा क्या है , धर्म की हकीकत क्या है , आखीर हम क्या माने की ये धर्म क्या है , धर्म कब पैदा हुआ , क्या धर्म को पैदा किया जा सकता है , क्या धर्म को खत्म किया जा सकता है ।
इस तरह के तमाम प्रश्न हमारे जहन में पनपते लगते है ,इस तरह के कई सेकड़ो सवाल हमारे जहन में उमड़ते रहते है लेकिन क्या कभी इनका उचित उत्तर मिलता है , क्या इनका सही अर्थ हमें कभी समझ में आता है ।
आइये धर्म के बारे में उपरोक्त तमाम सवालों के जवाब ढूंढने की एक कोशिस करते हैं ।
वैसे तो है धर्म और आध्यात्मिक दुनिया से जुड़े साधु , संत , बुद्धिजीवी सभी बहुत बेहतरीन धार्मिक व्याख्या देते है । हर किसी की अपनी अपनी व्याख्या है और सभी ने अच्छा संदेश और अच्छी धार्मिक व्याख्या देने की कोशिस की गई है ।
मेरी समझ , मेरी बौद्धिक क्षमता , धर्म और आध्यात्मिकता के बारे में मेरी समझ जो कहती है वो धर्म की क्या व्याख्या देती है ।
धर्म क्या है
धर्म न अफीम है , न गांजा है
धर्म न चरस है , न भांग है
धर्म न दारू है , न बीड़ी सिगरेट है
धर्म न मंदिर है , न मस्जिद है
धर्म न गुरुद्वारा है , न गिरिजाघर है
धर्म न गीता है , न कुरान है
धर्म न बाइबिल है ,न गुरु ग्रंथ साहिब है
धर्म न कोई किताब है , न कोई पुस्तक संग्रहालय है
धर्म न धूप है , न दिया है
धर्म न अगरबत्ती है , न दीपक है
धर्म न मंदिर है , न मंदिर की चौखट है
धर्म न हरिद्वार है , न मक्का है
धर्म न मदीना है , न रोम है
धर्म न काशी है , न मथुरा है
धर्म न सुन्नत है , न जनेऊ है
धर्म न हज है , न गंगा की डुबकी है
ये सब धर्म नही हैं
ये सब तो धर्म के माध्यम हैं
ये सब तो धर्म के रास्ते हैं
जिन पर चलकर धर्म की गोद में , धर्म की आस में , धर्म के चरणों में , धर्म की चौखट में , धर्म धर्म के पास पहुचा जा सकता है ।
ये सब तो वो रास्ते है जिन पर चलकर धर्म की खोज का सफर शुरू किया जाता है
ये सब तो वो रास्ते है जिन पर चलकर जीवन को धर्म की उम्मीद बंधाई जा सकती है ।
धर्म तो सिर्फ एक था , एक है और एक रहेगा ।
जो न कभी जन्मा था , न कभी जन्मेगा , न कभी मरा , न कभी मरेगा । जो न कभी पैदा हुआ था , न कभी पैदा होगा । जो न कभी नष्ट हुआ , न नष्ट हो सकता ।
जिसे न पैदा किया जा सकता , न मारा
जा सकता ।
जो आदि है , अनंत है , अनादि है ।
बस यही धर्म है ।
अब ऐसी क्या चीज है जो न पैदा हुई , न नष्ट हुई , न जन्मी , न मरी । जो आदि है , अनादि है , अनंत है ।
वह है सनातन
फिर अगला सवाल आता है ।
सनातन क्या है ।
सनातन है
प्रेम , बंधुत्व , भाईचारा , स्नेह , मोहब्बत , ईमान , इंसानियत ।
बस यही सनातन है और यही धर्म है ।
धर्म का अर्थ कर्तव्य से है
यदि हम सभी अपना कर्तव्य ठीक से पालन नही करेंगे तो यह जीवन , यह संसार , यह पृथ्वी , मानव और मनुष्यता एक बहुत बड़े संकट में पड़ जाएगी और पाप के गर्त में समा जाएगी ।
और यदि हम अभी अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी से करेंगे तो इसे पाप के गर्त में सामने से बचाया जा सकता है ।
हम सबका क्या कर्तव्य है
भाई का भाई के प्रति क्या कर्तव्य है
बाप के बेटे के प्रति और बेटे का बाप के प्रति क्या कर्तव्य है
भाई का बहन के प्रति और बहन का भाई के प्रति क्या कर्तव्य है
साधु संतों का भक्तों के प्रति और भक्तों का साधु संतों के प्रति क्या कर्तव्य है
पुलिस का जनता के प्रति और जनता का पुलिस के प्रति क्या कर्तव्य है
इंसान का प्रकृति के प्रति क्या कर्तव्य है
इंसान का पशु पक्षियों के प्रति क्या कर्तव्य है
बस यही धर्म है ।
बहुत पुराने समय में हम लोग सिर्फ चार वर्णों में विभाजित थे
ब्राह्मण
क्षत्रिय
वैश्य
शुद्र
ब्राह्मण का कर्तव्य क्या था :-
अज्ञानता का नाश करना
क्षत्रिय का कर्तव्य क्या था:-
अन्याय का नाश करना
वैश्य का कर्तव्य क्या था :-
अभाव का नाश करना
शुद्र का कर्तव्य क्या था:-
सेवा करना
इस तरह सभी अपने अपने धर्म कर्तव्य का पालन करते थे और सब खुश थे और संसार सुखी था ।
लेकिन आज हम सभी जाती और संप्रदाय के जाल में इस कदर उलझ गए है कि चारों तरफ एक घृणा , द्वेष , फरेब और हिंसा का माहौल बना हुआ है ।
और इस उलझन ने बहुत ही दुख दर्द भरी ये दीवारें खड़ी कर रखी हैं । और बस यही एक कारण है कि आज हम एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़े हैं जहां पर इंसान धर्म की खातिर मरने को तैयार है , कटने को तैयार है , मारने को तैयार है , काटने को तैयार है ।
लेकिन कोई भी धर्म की राह पर चलने को तैयार नही है
आज हम किसी महापुरुष , किसी महान संत , किसी बड़े बुद्धिजीवी , अपने माँ बाप की शवयात्रा के पीछे सेकड़ो किलोमीटर पैदल चलने को तैयार है लेकिन उनके बताए उपदेश , संस्कार , और उनकी शिक्षाओं पर एक कदम भी चलने को तैयार नही हैं ।
और इस बदलते परिवेश में आज यह देखा जा रहा है कि
मुसलमान भाई तो है
लेकिन
मोहम्मद साहब का भाई चारा कहा गया ।
क्रिचिश्यन भाई तो हैं
लेकिन
ईसा मसीह का प्रेम कहां गया
जैन भाई तो हैं
लेकिन
भगवान महावीर की अहिंसा और मैत्री कहां गई
बोध भाई तो हैं
लेकिन
भगवान बुद्ध की करुणा कहां गई
सनातनी तो हैं
लेकिन
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की मर्यादा कहां गई ।
आओ सब मिलकर रहें और धर्म की बुनियाद मजबूत करें ।
धर्म की बुनियाद है
प्रेम
करुणा
सत्य
दया
मैत्री
मोहब्बत
अहिंसा
ईमान
कर्तव्य
ईमानदारी
लेखक : डॉ रमेश भाई आँजणा
http://www.rameshbhaianjana.com
धन्यवाद
2 Comments
Meena Rajput · May 20, 2022 at 7:12 am
बिल्कुल सही , सत्य और सटीक विश्लेषण
Rajesh Malhotara · May 20, 2022 at 11:57 am
धर्म की व्याख्या इससे अच्छी क्या हो सकती है ।
आपका धन्यवाद
बहुत ही सुंदर सरल और सटीक व्याख्या ।