इंसान एक सामाजिक प्राणी है, इंसान धरती पर सजीव रूप से चलने वाला, अपना काम करने वाला, सोचने वाला और अपने विवेक का प्रयोग करने वाला एक प्राणी है। जो इस धरती पर ईश्वर के द्वारा सृजन किया गया है। एक ऐसी असीम शक्ति जो अदृश्य है जिसे देखा नहीं जा सकता, जिसे छुआ नहीं जा सकता , जिसे पकड़ा नहीं जा सकता, जिसे मारा नहीं जा सकता, जिसे पैदा नहीं किया जा सकता, सिर्फ अपने जीवन में होने वाली समस्त घटनाओं और चल रहे इस जीवन के झंझावातों में जीवन के समस्त उतार-चढ़ाव में, दुख में सुख में आने वाली हर परिस्थिति स्थिति में दशा और दिशा में उस ईश्वर की असीम शक्ति को सिर्फ और सिर्फ महसूस किया जा सकता है ऐसी अजीब शक्ति से भरपूर उस देवीय , ईश्वरीय शक्ति द्वारा एक प्राणी को इस धरती पर बनाकर भेजा गया जो कि अपने विवेक से सोच सकता है बोल सकता है। अपने शब्दों के माध्यम से भावों के माध्यम से अपने शब्दों का आदान-प्रदान भाषा का आदान प्रदान कर सकता है। अपनी भावनाओं का आदान प्रदान कर सकता है वह एक प्राणी है; जो कि कुछ निश्चित अवधि के लिए आया है अपनी उम्र की सीमा में बंधा हुआ है उस उम्र के बाद इस दुनिया से विदा ले लेता है।
इंसान को बनाने के साथ-साथ ईश्वर ने उस इंसान में कुछ ऐसी खूबियां डाली जिन खूबियों के आधार पर वह प्राणी एक इंसान एक मनुष्य के रूप में जाना जाएगा और उस में सबसे महत्वपूर्ण बात डाली, इंसान के कर्म करने की एक खूबी कि वह इस धरती पर जब तक रहेगा जितने साल जिएगा तब तक वह कर्म करेगा। जैसे कर्म करेगा वैसे उसको आने वाले समय में उसके परिणाम मिलेंगे। हम जैसा आज मेहनत करते हैं वैसा हमें परिणाम मिलता है हम जैसे कर्म करेंगे वैसा ही हमें उन कर्मों का फल भोगना पड़ता है। यदि अच्छा कर्म करते हैं तो अच्छे फल और बुरा करते हैं तो बुरे फल भोगने पड़ते हैं लेकिन इन सबसे ऊपर एक चीज आती है इंसानियत
इंसानियत की परिभाषा को यदि शब्दों में परिभाषित किया जाए तो यह कहना मुश्किल होगा क्योंकि हर इंसान, हर लेखक, हर कभी हर बुद्धिजीवी, हर विवेकशील प्राणी अपने अपने हिसाब से इंसानियत की अपनी-अपनी परिभाषाएं परिभाषित करता है। इंसानियत वह है जो एक इंसान के कर्मों से बनती है इंसान के अच्छे कार्यों से बनती है उसके द्वारा किए गए बेहतरीन कर्मों से, मेहनत से, परोपकार से, सेवा से इन सब से जो उसका चरित्र बनता है वही इंसानियत कहलाती है
इसलिए ऐसा कहा जाता है कि इंसान मर जाता है लेकिन उसकी इंसानियत जिंदा रहती है। शख्स मर जाता है लेकिन उसकी शख्सियत जिंदा रहती है। उसकी इंसानियत और शख्सियत के हजारों लाखों साल तक जिंदा रहने के पीछे एक बहुत बड़ा इतिहास चलता है इतिहास यह कहते हुए चलता है कि वह फलाना इंसान; जिसके कर्म अच्छे थे, जिसकी सोच सकारात्मक थी, उसने दुनिया के बारे में, स्वयं के बारे में परि वार के बारे में, जमाने के बारे में हर प्राणी मात्र के बारे में अच्छा सोचा, परोपकार का सोचा, सेवा की भावना से सोचा, निस्वार्थ सोचा हमेशा उसने सकारात्मक सोच रखी। सकारात्मक सोच के परिणामों के कारण उसके हर कार्य में सकारात्मकता आई, उसके कार्य बेहतरीन होते गए और उन बेहतरीन कार्यों के कारण उसका दायरा बढ़ता गया और धीरे धीरे धीरे उसका एक बेहतरीन, शानदार चरित्र विकसित होता गया और वह एक शख्सियत, इंसानियत के तौर पर दुनिया और जमाने के लिए एक मिसाल बन गया। अब उसकी इंसानियत उसके जाने के बाद भी इस जमाने को हजारों साल तक याद रहती है वह इंसान, उसका चेहरा, उसका रूप रंग, उसकी कद काठी, उसका जन्म, उसकी मृत्यु सब कुछ दुनिया भूल जाती है। एक समय ऐसा आता है कि लगभग लगभग फोटो भी गायब हो जाते हैं लेकिन उसके द्वारा किए गए परोपकार के कार्य इतिहास के पन्नों में अंकित हो जाते हैं और वह उसकी इंसानियत के रूप में हजारों, करोड़ों साल तक जिंदा रहते हैं; बस उसके पीछे एक ही कारण था कि उसकी सोच सकारात्मक थी।
For RAS there is a best set of Notes
0 Comments